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लेखनी कहानी -01-Jun-2022 डायरी जून 2022

फंसाने वाले खुद फंस रहे हैं 


डायरी सखि, 
"ये क्या हो रहा है देश में ? 2002 के दंगों का फैसला 20 साल बाद 2022 में आ रहा है । क्या यह महज एक संयोग है या कोई साजिश" ? जिन्होंने "साहेब" को फंसाने की साजिश रची थी , पुलिस उन्हें क्यों गिरफ्तार कर रही है ? क्या कोई लड़का किसी लड़की को फंसाता नहीं है ? तो क्या लडकी उसे गिरफ्तार करवा देती है ? लोकतंत्र की हत्या का एक और सबूत है ये" । 

चौंक गई ना सखि ? मैं भी चौंका था ऐसी पत्तलकारिता पर । तुम तो ऐसी पत्तलकारिता देखने सुनने की अभ्यस्त हो सखि । बरसों से ऐसी पत्तलकारिता हो रही है । चलो आज मैं तुम्हें "बिके हुए चैनल" के "बकैत कुमार" के "क्राइम टाइम" की रिपोर्टिंग से रूबरू करवाता हूं । ध्यान से सुनना सखि और फिर बताना कि ऐसे बेईमान,  मक्कार, धूर्त, फर्जी, ऐजेण्डावादी, चापलूस , दोगले पत्लकारों को सजा कब मिलेगी ? तो आओ , सीधे चलते हैं "क्राइम टाइम" में । 

भाइयो और बहनों । मैं "बकैत कुमार" "बिके हुए चैनल" पर आपका मेरे रोजाना के रात के 9 बजे के "पेड शो क्राइम टाइम" पर "खाली" स्वागत करता हूं । अब तो मैं आपका "हार्दिक स्वागत" भी नहीं कर सकता क्योंकि अब "हार्दिक" हमारा नहीं रहा "उनका" हो गया है । यह एक और उदाहरण है "तानाशाही" का, "हिटलरवाद" का । हिटलर भी इतना क्रूर और नृशंस नहीं होगा जितना ये "मौत का सौदागर" है । 

माना कि सुप्रीम कोर्ट ने आज इस "मौत के सौदागर" को क्लीन चिट दे दी है । मगर हम तो इसे "मौत का सौदागर" ही कहेंगे । क्योंकि हमारी "मालकिन" ने इन्हें यही नाम दिया है । और आप तो जानते ही हैं कि हम तो पैदाइशी गुलाम हैं हमारी "मालकिन" के । हमारे एजेण्डे को यही स्कूटर करता है ।

भाइयो, मैं आपको सन 2014 से ही बताता चला आ रहा हूं कि किस तरह इस देश में एक "अघोषित आपातकाल" थोप दिया गया है । मगर ये "गोदी मीडिया" को दिखाई नहीं देगा । एक बेचारी "तीस्ता सीतलवाड़" ने कितनी मेहनत से गुजरात के दंगों को पूरे 20 साल तक न केवल जिंदा रखा बल्कि उसे "खौलाते हुए" भी रखा । यह बात में नहीं बोल रहा हूं यह बात तो सुप्रीम कोर्ट बोल रहा है । तो, ऐसी महान धर्मनिरपेक्ष, लिबरल, समाजसेवी, जुझारू महिला तीस्ता ने मेरे जैसे बिके हुए पत्तलकारों , गुलाम चैनलों , पद्म पुरस्कारों से खरीदे हुए तथाकथित बुद्धिजीवियों , एक डॉन के टुकड़ों पर पलने वाले बॉलिवुडिया भांडों और हमारी मालकिन की पार्टी ने वामपंथी और कुछ लेफ्ट लिबरल विचारधारा के जजों के सहयोग से गोधरा हत्याकांड को गुजरात दंगों के नाम से प्रचारित कर न केवल गुजरात को बदनाम करने में कोई कसर छोडी बल्कि इसी सुप्रीम कोर्ट से एक "स्पेशल इनवेस्टिगेशन टीम" भी गठित करवाई और गुजरात दंगों में मौत के सौदागर की भूमिका की जांच भी करवाई । मगर नतीजा क्या निकला ? वही ढाक के तीन पात । ऐसा क्यों हुआ ? इसलिए कि आज के हिटलर ने न केवल मीडिया का मुंह बंद कर रखा है बल्कि "न्यायपालिका" को भी स्वतंत्र रूप से काम नहीं करने दिया जा रहा है । अब इससे बुरे दिन और क्या होंगे भाइयो ? 

एक बात मैं पहले ही स्पष्ट कर दूं भाइयो कि हम ऐसे पत्तलकार हैं जिन्होंने 59 कार सेवकों को जेहादियों द्वारा जिंदा जलाने पर कभी एक शब्द नहीं बोला । 1984 के नरसंहार पर एक शब्द नहीं लिखा । देश में होने वाले सैकड़ों दंगों पर कभी कोई "क्राइम टाइम" नहीं किया । मगर गुजरात दंगों पर हमने इतने शो किए हैं कि बेचारे शो भी कह रहे हैं कि अब तो किसी और को पकड़ लो, कब तक मेरा खून चूसोगे  ? उसे क्या पता कि हम कितने बड़े "जोंक" हैं । पूरा खून चूसकर ही मानेंगे । 

ऐसा नहीं है कि गुजरात दंगों को 20 सालों तक जिंदा रखने का काम अकेली तीस्ता सीतलवाड़ ने पूरा किया था । इसमें एक चाटुकार आई पी एस संजीव भट्ट और एक हमारो मालकिन का घरेलू नौकर और  गुजरात का तत्कालीन डीजीपी रेंक का अधिकारी आर बी श्रीकुमार और साहेब विरोधी हीरेन पाण्ड्या का भी अतुलनीय योगदान है । इन जैसे "गुलामों" को तो अपनी कर्त्तव्य निष्ठा और मालकिन की सेवा करने के लिए "भारत रत्न" दिया जाना चाहिए । मगर लोगों के मौलिक अधिकारों को कुचलने वाली सरकार का एक और कारनामा देखिए कि इन बेचारों को गुजरात पुलिस गिरफ्तार करने पर तुली है । हीरेन तो अपने कुकर्मों की सजा बहुत पहले ही पा चुका है और अब नर्क में बैठा बैठा बाकियों को देख रहा है कि इनका क्या हश्र होता है ।

क्या किया है इन "चमचों" ने ? बस इतना सा अपराध ही तो किया है कि साहेब को फंसाने की साजिश में अपनी भूमिका निभाई थी । तीस्ता सीतलवाड़ ने अपने धर्मनिरपेक्ष पति जावेद शेख के साथ मिलकर एक फर्जी NGO ही तो बनाया है जिसका नाम रखा था "सबरंग" । इसमें सब रंगे हुए सियार ही तो थे इसीलिए ये नाम रखा था । अब आप ही बताओ भाइयो , कि "रंगीले" लोगों के नाम पर "सबरंग" नाम रखना कोई अपराध है क्या ? ये अलग बात है कि अमरीका के "फोर्ड फाउंडेशन" से भारत विरोध के लिए मिले करोड़ों डॉलर को यह NGO अपनी "मौज मस्ती" करने में और अपने रिश्तेदारों में बांटने में काम में ले लेता है , शराब पीने के काम में ले लेता है । दंगों से दुखी बेचारी तीस्ता अपना गम हल्का करने के लिए अब शराब भी नहीं पी सकती है क्या ? और कितना जुल्म करेगी यह सरकार बेचारे इन जैसे  "शरावियों" पर ? 

बस इतना ही नहीं है । तीस्ता तो इतनी बड़ी समाजसेवी है कि उसने दंगा पीड़ितों की मदद के लिए जनता से करोड़ों रुपए का चंदा भी इकठ्ठा किया था । क्यों ? ये भी बताना पड़ेगा क्या ? ये कपिल सिब्बल जैसे नामी गिरामी वकीलों को मोटी रकम कौन और कहां से देता ? इस चंदे में से कुछ करोड़ रुपए अगर तीस्ता और उसके पति जावेद खा गये तो उन्होंने कौन सा गुनाह कर दिया ? हमारी मालकिन का तो उसूल ही यही है "खाओ और खाने दो" और हम सब  "चमचे" उनके उसूलों के बड़े पक्के हैं । 

अब बात करते हैं संजीव भट्ट की । क्या किया था उसने ? एक शपथ पत्र ही तो दिया था न्यायालय में । और उस शपथ पत्र में क्या लिखा था ? बस इतना सा लिखा था कि गोधरा में निर्दोष 59 कारसेवकों को जिंदा जलाने के बाद गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री ने एक उच्चस्तरीय मीटिंग बुलाई थी और उसमें कहा था कि "क्रिया की प्रतिक्रिया होनी चाहिए।  ऐसा सबक सिखाओ कि सालों तक याद रहे" । अब ये अलग बात है कि वह संजीव भट्ट उस मीटिंग में बुलाया ही नहीं गया था । क्यों ? क्योंकि उसकी हैसियत इतनी थी ही नहीं कि वह मुख्यमंत्री की मीटिंग में बुलाया जाये । मगर अपनी मालकिन को खुश करने के लिए और अपनी एंट्री राजनीति में करने के लिए उसने सरासर झूठा शपथ पत्र न्यायालय में दिया । ये तो करना ही था । अगर नहीं करते तो क्या हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट उस पर संज्ञान लेते ? "साहेब" को "जलील" करने के लिए वह सब कुछ किया जो कि निंदनीय था, शर्मनाक था, अनैतिक था, विधि विरुद्ध था और साजिशन था । 1947 से जो लोग साजिश करते आ रहे हैं उनसे और कोई उम्मीद करनी चाहिए क्या ? इसके बदले में संजीव भट्ट की पत्नी को हमारी मालकिन ने विधान सभा का टिकट दे तो दिया । हमारी मालकिन हम सब चमचों का पूरा ध्यान रखती हैं । आप लोगों को तो पता ही है कि मेरी सेवाओं से प्रसन्न होकर  मालकिन ने मेरे भाई जिस पर बलात्कार का आरोप था और जिसे मैंने कपिल सिब्बल के माध्यम से फर्जकारी करके बडी मुश्किल से आरोप मुक्त करवाया था , को भी पिछले चुनाव में बिहार से टिकट दिलवा दिया था । वैसे एक बात बताऊं , मालकिन हैं बड़ी दयालु । हम जैसे लोगों के आगे समय समय पर "हड्डी के टुकड़े" फेंकती रहती है जिससे हम लोग "मौज" करते रहते हैं । 

अब बात करते हैं आर बी श्रीकुमार की । तत्कालीन IPS अधिकारी है जिसने बयान दिया था कि दंगों को रोकने के लिए "साहेब" ने मना किया था । एक सरकारी अधिकारी से इस तरह के झूठे बयान दिलवाने की कला हमारी मालकिन को अच्छी तरह से आती है । उसके बयान और संजीव भट्ट के शपथ पत्र का ही तो कमाल है कि हम जैसे पत्तलकार सालों साल तक "साहेब" को बदनाम करते रहे, अपराधी बताते रहे और उनकी राजनीतिक हत्या करने की साजिश रचते रहे । हमारी मालकिन तो इतनी दयालु हैं कि हाईकोर्ट से इस अधिकारी को डीजीपी भी बनवा दिया था वर्ना  साहेब ने तो मना कर दिया था डीजीपी बनाने से । अब आप ही बताओ कि कल इनको गुजरात पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है । क्या ये अच्छी बात है ? 

एक और आदमी का नाम लेना बहुत जरूरी है , वह आदमी है हीरेन पाण्ड्या।  अरे वही साहेब विरोधी । पहले उन्हीं की पार्टी में था बाद में अलग हो गया । मालकिन को एक मोहरा चाहिए था साहेब को फंसाने के लिए । हीरेन पाण्ड्या से बढिया मोहरा और कौन हो सकता था ? इसलिए उसे लपक लिया । खूब इस्तेमाल किया उसका । बाद में उसकी हत्या कर दी गई । ऐसे मोहरों का यही अंजाम होता है और आरोप भी साहेब पर मंढ दिया गया हत्या करवाने का । है ना एक तीर से दो शिकार ? इस में तो महारत हासिल कर रखी है । किसने ? अब यह भी बताने की जरूरत है क्या ? इतनी बुद्धि तो तुम लोग भी लगा लिया करो कभी कभी । 

अब इन सभी लोगों को गुजरात पुलिस द्वारा फंसाया जा रहा है । यह अभिव्यक्ति की आजादी पर कुठाराघात है । इसकी हम कड़ी निंदा करते हैं । 

तो आज हमने भी खूब बकैती कर ली है भाई लोगो । कल कुछ दूसरे मुद्दों पर फिर बकैती करेंगे । अच्छा तो अब राम राम । अरे सॉरी , सॉरी । राम राम नहीं गुड नाइट । मालकिन को मत बता देना कि मेरे मुंह से राम राम निकल गया था । वरना मेरी तनख्वाह कट जाएगी ।

सखि, ऐसे शानदार पत्तलकार का शो देखकर आनंद आ जाता है । वैसे ये अकेला नहीं है, पूरी गैंग है इनकी । अब मैं किस किस का नाम लूं यहां पर ? तुम तो बहुत समझदार हो सखि, सब जानती हो । 

अच्छा तो अब चलते हैं । मैं तो राम राम कर सकता हूं । मैं कोई जड़ खरीद गुलाम थोड़ी हूं । राम राम जी । 

हरिशंकर गोयल "हरि" 
26.6.22 

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2 Comments

Radhika

09-Mar-2023 12:42 PM

Nice

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Abhinav ji

26-Jun-2022 09:09 AM

Nice

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